Menu

KRISHNA Tarangam

A Political and Sciences Website

योग, बोध, बुद्ध व योगेश्वर कृष्ण

योग, बोध, बुद्ध योगेश्वर कृष्ण

विवेक शर्मा


योगियों की दुनिया विचित्र है। अद्भुत रहस्यों से भरी हुई। जिसे बिना समझे विचारे आँकना वैसा ही है जैसे काले गौगल्स पहन कर प्रकाश की न्यूनता पर टिप्पणी करना। और याद रहे, श्री कृष्ण योगेश्वर हैंसमस्त योग व योगियों के ईश्वर।

 

बिना पूर्वाग्रह के, बिना किसी पूर्व कल्पना के योगियों से कृपा माँगनी चाहिये। उनके सामने ज्ञान नहीं बघारना चाहियेसूर्य को दीया दिखाना अपने ही प्रकाश की न्यूनता को सिद्ध करना है। उनके क्रोध को देखकर घृणा या भयाक्रान्त होने की भी आवश्यकता नहीं। उनके प्रत्येक कृत्य में जनकल्याण है। वे ब्रह्माण्ड में रहते हैं और आप अपनी छोटी सी दुनिया में। ब्रह्माण्ड के कण-कण में उनका आत्मभाव है जैसे आपका कतिपय अपने घर-परिवार में। उनकी सोच व्यापक है आपसे अनन्त गुना विस्तृत।

 

श्री कृष्ण के परे क्या?

 

जल की बूँद सागर की विशालता में समा सकती है पर उसको समझ नहीं सकती। जब श्री कृष्ण को योगेश्वर कहते हैं तो हमें उन्हें योग योगियों का ईश्वर मानना ही होगा। उनसे बड़ा कोई नहीं, वे स्वयं कहते हैंमत्तः परतरं  नास्ति  कीन्चित अस्ति धनन्जय”— मुझसे परे बड़ा कोई नहीं, कोई नहीं, धनन्जय। तो अपने को विशिष्ट क्यों समझते हो? जब तक यह आत्म विशिष्टता रहेगी, तब तक आप आध्यात्म से कोसों दूर हो, भलेही सारा दिन राम-राम रटते हो। मैं और मेरा के वन में तुम्हारा राम भटक रहा है। ये मैं और मेरा जब भगवान के लिये हो जाता है तो आप अथाह समुद्र में कूप की भाँति हो जाते होयह समुद्र मैं हूँ या कहो मैं समुद्र में हूँ अब एक ही बात हो जाती है। यह ईश्वर मैं हूँ या मैं ईश्वर में हूँ में कहां अनंतर है। हाँ, एक को अद्वैत कहते हैं और दूसरे को भक्ति भाव और मेरे स्पष्टता के इस प्रयास को ज्ञान कहेंगे इसके क्रीयान्वयन को योग। बात एक ही है, इसलिये भाषा के भेद जाल में ना फँसकर, सहजता से आत्मभाव में स्थिर रहो। जैसे गाड़ीवान के बैल को मारने पर रामकृष्ण परमहंस करहा कर गिर गये और उनकी पींठ पर डण्डे के निशान उभर आये। यह है आत्मभाव, जो शृष्टि के कण-कण के साथ आपकी सहज एकात्मता को अभिव्यक्त करता है। यही है श्री कृष्ण के कथनसर्वभूतस्थत्मात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि।

ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः।।का सही अर्थ। मात्र कहने के लिये समदर्शन नहीं, उसे प्रत्यक्ष जीना है समदर्शन। यह तभी सम्भव है जब आप सकल ब्रह्माण्ड के साथ एकात्मा हौं, कहने के लिये नहीं, वास्तव में, प्रत्यक्ष रूप से। परन्तु अपने परिवार में ही तुम्हारा छोटा-मोटा समभाव है, उसके परे नहीं। कुछ एक का जीवों के साथ है पर समस्त जीवों के साथ नहीं। कोई कुत्ता देख बिदकता है, कोई साँप देख, कोई कौकरोच देख, और कोई छिपकली देख। वाह रे, तुम्हारा समभाव! अपने बच्चे और पत्नि से परे जा ही नहीं पाता है, और करुणावश चला भी जाए तो, वह दो पल से अधिक नहीं ठहरता, और भगवान को भजते हो, जिसका सबमें समभाव है। ये द्वन्द्व ही तुम्हें ईश्वर के सही स्वरूप से दूर रखे है।  ईश्वर बस हमारे परिवार को आगे बढ़ाये, उसकी रक्षा करे और दूसरे का परिवार जाये भाड़ में वाह रे आपका आध्यात्मिक ज्ञान।

 

बोध बुधत्त्व

 

जितना तुम्हारा बोध है उतने बुद्ध तुम हो। अपने बुद्धत्व को जाने बिना आप बुद्ध को नहीं समझ सकते। अपने बुद्धत्व को नकार कर किसी बाहरी बुद्ध की खोज तुम्हें अपने तक लाती रहेगी जब तक कि तुम स्वयं अपने बुद्धत्व को नहीं समझ लेते। अपनी बुराइयों को जानकर उनसे मुक्त होने का भाव बोध है।उनसे मुक्त हो जाना बुद्धत्व है। इसे जो १००% करता है, वह महावीर है, और जो हृदय से करने का प्रयास कर रहा है, वह संघ गामी है। संघ गामी का आशय, बुद्ध के भौतिक संघ की ओर गमन करने वाला नहीं, वरन् प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष बुद्ध के सत्संग में जाने वाला है। सत्संग की सही व्यख्या श्री कृष्ण नेमच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परंसूत्र द्वारा की है। संघ सत्संग है। जो मुझमें चित्त अपनी ऊर्जा को लगाते हुये परस्पर मेरी ही बात करते हैं वेमां नित्यं तुष्यन्ति रमन्ति ” —मुझमें, मेरे साथ ही सन्तुष्ट रहते हुये रमण करते हैं। यह हैबुद्ध शरणं गच्छामिका सही अर्थ।

अब तो हर कोई कहेगा कि वह ऐसे ही शरण में हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कितेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकं, ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते”—ऐसे प्रेमपूर्वक मेरे साथ सततयुक्त रहने वालों को मैं बुद्धियों देता हूँ जिससे वह मुझको प्राप्त हों। तो यदि आप वास्तव में संघ में हैं तो आप उनके परिवार में मिल जायेंगे। इसका आशय है आप सही मायनों में बुद्धत्त्व को प्राप्त कर लेंगे—“तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता भगवान कहते हैंमैं  अनुकम्पाकरके अज्ञान के अन्धकार को उनके हृदय में ज्ञान का दीप जलाकर नाश करदेता हूँ। अतः बुद्धत्त्व यही ज्ञानमयी अवस्था है जो बुद्धिमान ऊर्जा के अनुकम्पा से प्राप्त होती है।

Go Back



Comment

Blog Archive

YOU ASK Comments

I loved your book The seed of Bhagwad Gita.
It is an eye opener. My daughter is in the US and I want to send this book to her. Do you have a digital version of this book.
It will be easier for me to send it to her.

I want your guidance please provide me your contact No

Reality of life revealed.Thankyou
Bhaiya

9664082198 par WhatsApp karein
Call abhi sambhav nahi

मुझे आपसे हिन्दी एम ए हेतु ट्यूशन के सन्दर्भ में जानकारी अपेक्षित है क्या आपसे दूरभाष पर सम्पर्क हो सकता है ।