अमलतास का पत्र मानव के नाम
स्मृति वन
जयपुर।(14 अगस्त 2020)
हे मानव,
सस्नेह वंदन।
मैं जानता हूँ कि ये पाती पाकर चौंक उठोगे तुम। तुम्हें आदत नहीं है न पत्र पढ़ने की, तुम्हारे संदेश तो अब मेल,ट्विटर,व्हाट्सएप और मैसेंजर पर आया-जाया करते हैं। यह जानते हुए भी मैं तुम्हें पत्र लिख रहा हूँ ताकि तुम्हें जीवन और परिवेश के प्रति आत्मीयता के मायने समझा सकूँ, तुम्हारी संवेदनाओं को दिशा दे सकूँ और तुम तक पहुँचा सकूँ जंगल का दर्द, तुम्हें दिखा सकूँ तुम्हारी क्रूरता से क्षत- विक्षत, आहत मेरे वन-उपवन,मेरे पुष्प, मेरी लतिकाएँ।
अरे! इतनी अपरिचित दृष्टि से न देखो इस पत्र को। अजनबीपन का ये भाव हटादो अपनी आँखों से। मैं वही अमलतास हूँ, सड़क के किनारे स्मृति-वन के सामने उगा झूमर से झूलते पीले फूलों वाला अमलतास। अब भी नहीं पहचाना? कैसे पहचानोगे? तुम रोज़ अपनी कार का काला धुआँ छोड़कर जाते हो मुझपर लेकिन एक बार भी इन गुज़रे सालों में तुमने मुझपर आत्मीय दृष्टि नहीं डाली। जानते हो? जब गाड़ियों का रेला गुज़रता है न सड़क से, दम घुटता है मेरी पत्तियों का,मूर्छा- सी छाने लगती है उनपर।आखिर कितना अवशोषित करेंगी वे तुम्हारा ज़हर,जो दिनोंदिन बढ़ता ही जाता है। पत्तियों की मूर्च्छा का अर्थ जानते हो? इसका अर्थ है वृक्ष का धीरे-धीरे मृत्यु के निकट जाना। वृक्ष की मृत्यु का अर्थ तो समझते हो न तुम?
नहीं, नहीं समझते वर्ना हालात इतने बदतर न होते। देखो, हम वृक्ष, हमारा समुदाय आधार हैं इस पारिस्थितिक(ecology) तंत्र के। हम में से हर एक पेड़ 24 घंटे में 55 -60 लीटर ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है और हर एक मनुष्य को 24 घंटे में साँस लेने के लिए लगभग 550 लीटर ऑक्सीजन चाहिए यानी लगभग 10 पेड़,फिर भी तुम हमें खत्म करने पर तुले हो। हमारी पत्तियाँ कार्बनडाई ऑक्साइड और अन्य जहरीली गैसें सोखकर वातावरण में जीवनदायिनी ऑक्सीजन घोलती हैं, हम तुम्हारी प्रदूषण, मिट्टी के कटाव,बाढ़ और सूखा जैसी सभी समस्याओं के समाधान हैं।
हम तुम्हें शुद्ध हवा देते हैं साँस लेने के लिए ; पौष्टिक भोजन औरऔषधियाँ देते हैं स्वस्थ रहने के लिए ; अगर,चंदन,पुष्प,समिधा सब हमीं देते हैं पूजा के लिए। और तो और प्रेम के प्रतीक गुलाब जिन्हें तुम बड़े प्यार से अपनी प्रेमिका को देते हो;बड़े फ़क्र से रोज़ डे और वेलेंटाइन डे मनाते हो,सब हमारे ही बलबूते पर न । सूखकर गिरी हमारी पत्तियाँ, हमारी टहनियाँ उस जमीन को पोषित करती हैं,जिस पर तुम्हारी फ़सलें लहराती हैं और जिन्हें देखकर तुम फूले नहीं समाते ।
सोचो, हमारी इस निःस्वार्थ सेवा के बदले, हमारी इस नेह की सौगात के बदले तुम हमें क्या देते हो? काला धुआँ? अवैध कटाई? न जाने कितने पशु-पक्षियों , जीव-जन्तुओं को बेआसरा करते हो। और हाँ, अभी तुमने पानीपत-हरिद्वार रोड पर गेहूँ के अवशेष जलाकर तो एक नई समस्या खड़ी करदी-हमारे लिए और खुद अपने लिए भी। जानते हो? ज़मीन में 1/2 फ़ीट तक उसे उर्वर बनाने वाले सूक्ष्म जीवाणु ही ख़त्म हो गए। आवासीय ज़रूरतों,उद्योगों,खनिज-दोहन के नाम पर तुम वर्षों से हमारी बलि चढ़ाते आ रहे हो।
इन दिनों कोरोना-काल में बिना कामकाज के घर पर बैठकर जैसी घुटन और निराशा अनुभव कर रहे हो न तुम, वैसी ही, ठीक वैसी ही घुटन होती है हमें, जब तुम हमें साँस लेने के लिए काला धुँआ देते हो।और हाँ, सुनो, वो चौराहे के पार जो 5-6 पेड़ काटे न तुमने सड़क चौड़ी करने के नाम पर, उनपर आशियाँ था कितने ही पंछियों का। तुमने तो मुड़कर भी नहीं देखा लेकिन मैं देख रहा था- वृक्षों की खुदी जड़ों में अपने शिशु तलाश करती चिड़ियाँ, उनकी कटी शाखों से अपने ध्वस्त घोंसलों के तिनके बटोरती चिड़ियाँ।
अब बस भी करो।जागो। संवेदनशील बनो पर्यावरण के प्रति वर्ना सृष्टि का अंत निकट जानो। याद रखो-
हम तुम्हारी श्वास हैं,
हम तुम्हारा खाद्य हैं,
हम उन्मुक्त सौंदर्य हैं,
हम तुम्हारा जीवन-उल्लास हैं।
हम हैं तो तुम हो,
फिर तुम हो तो हम क्यों नहीं?
बोलो हम क्यों नहीं?
आशा है ये पत्र तुम्हारी सोई आत्मा में हलचल मचा देगा, तुम्हें पर्यावरण के प्रति सजग कर देगा
इति शुभम्।
तुम्हारा अपना ही,
अमलतास