Menu

KRISHNA Tarangam

A Political and Sciences Website

Swami Muktinathananda

भक्ति संगीत हमें ईश्वर की ओर ले जाते हैं 

स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी

 
लखनऊ।

 
"भक्ति संगीत हमारे आध्यात्मिक साधन का अंग होना चाहिए- स्वामी जी"
 
सोमवार के प्रातः कालीन सत् प्रसंग में रामकृष्ण मठ लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने बताया कि जहाँ पर ईश्वर का भजन कीर्तन होता है वहाँ पर व जरूरी उपस्थित रहते हैं। एक बार नारद जी ने भगवान को पूछा था, आप तो सर्वव्यापी है लेकिन कहाँ पर पहुँचने से आप जरूर मिल जाएंगे। तब भगवान ने उत्तर दिया- 
"नाहं वसामी वैकुंठे योगिनां हृदये न च। 
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।"
 
 अर्थात हे नारद! मैं बैकुंठ में भी नहीं रहता हूँ और न ही योगीगण के हृदय में। लेकिन जहाँ पर मेरे भक्तगण भजन कीर्तन करते रहते हैं, वहाँ पर मैं जरूर विराजमान होता हूँ। इसलिए श्री रामकृष्ण ने भक्ति संगीत पर इतनी प्रधानता दी है। वे खुद भजन कीर्तन करते रहते थे एवं भक्तगणों को उसमें योगदान करने के लिए सर्वदा प्रोत्साहित करते थे। एक दिन उन्होंने एक ब्राह्म भक्त श्री त्रैलोक्यनाथ सांन्याल को कहा था- "जरा आनंदमयी का गाना गाओ तो।" त्रैलोक्य सुगायक थे एवं उनके भक्तिपूर्ण संगीत सुनते हुए श्री रामकृष्ण भावस्थ हो जाते थे। त्रैलोक्य गाया-"माता, मनुष्य संतानों पर तुम्हारी कितनी प्रीति है, जब इसकी याद आती है, तब आँखों से प्रेम की धारा बह चलती है। एवं जन्म से ही तुम्हारे श्री चरणों में अपराधी हूँ, फिर भी तुम मेरे मुख की ओर प्रेमपूर्ण नेत्रों से देखकर मधुर स्वर से पुकार रही हो। जब यह बात याद आती है, तब दोनों नेत्रों से प्रेम की धारा बह चलती है। तुम्हारे प्रेम का भार अब मुझ से ढोया नहीं जाता। जी  विकल होकर रो उठता है, तुम्हारे स्नेह को देखकर  हृदय विदीर्ण हो जाता है। माँ तुम्हारे श्रीचरणों में शरणागत हूँ।" 
    
 स्वामी जी ने कहा कि  उस समय श्री रामकृष्ण के साथ कई भक्त बैठे थे। इसके भीतर एक छोटा लड़का भक्त भी बैठा था, उनका नाम था 'छोटा नरेन'। गान सुनते ही छोटे नरेन गंभीर ध्यान में मग्न हो रहे हैं,- शरीर काष्टवत् जान पड़ता है। श्री रामकृष्ण मास्टर से कह रहे हैं, "देखो-देखो कितना गंभीर ध्यान है। बाहरी संसार का ज्ञान बिल्कुल नहीं है।" 
   अर्थात यह संगीत श्रवण मात्र से ही इनके मन भगवान में तल्लीन हो गया था। नवधा भक्ति में प्रथम भक्ति है, श्रवण भक्ति। ये  श्रवण भक्ति का मतलब है जब हम भगवान का नाम कर्ण से सुनते है तब वो हमारे मन को परिवर्तित कर देते हैं, इसलिए भक्ति संगीत हमारे आध्यात्मिक साधन का अंग होना चाहिए। 
 
       स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी ने कहा कि श्री रामकृष्ण की जीवनी तथा उपदेश को सामने रखते हुए हम लोगों को भी जीवन में भक्ति संगीत में अंश ग्रहण करना चाहिए। ताकि सहज रूप से हम ईश्वर से जुड़ सकें। भक्ति संगीत के माध्यम से हम भगवान के करीब पहुंच सकते हैं एवं आखिर में इस जीवन में ही भगवान को प्रत्यक्ष करते हुए जीवन सफल कर सकते है। 
 
स्वामी मुक्तिनाथानंद
 
 अध्यक्ष
राम कृष्ण मठ लखनऊ

Go Back



Comment

Blog Archive

YOU ASK Comments

I loved your book The seed of Bhagwad Gita.
It is an eye opener. My daughter is in the US and I want to send this book to her. Do you have a digital version of this book.
It will be easier for me to send it to her.

I want your guidance please provide me your contact No

Reality of life revealed.Thankyou
Bhaiya

9664082198 par WhatsApp karein
Call abhi sambhav nahi

मुझे आपसे हिन्दी एम ए हेतु ट्यूशन के सन्दर्भ में जानकारी अपेक्षित है क्या आपसे दूरभाष पर सम्पर्क हो सकता है ।